टीवी न देखने का जनआंदोलन चले और शहर शहर पोस्टर चस्पा हों

टीवी न देखने का जनआंदोलन चले और शहर शहर पोस्टर चस्पा हों


कम से कम इस दौरान लोग टीवी के कंटेंट को नए सवालों से समझेंगे। उन्हें समझ आएगा कि डिबेट एक सस्ता और बिना मेहनत का कंटेंट है। डिबेट का एंकर घूमता फिरता आता है और स्टुडियो में मौजूद दो भेड़ों को लड़ा कर चला जाता है। बहुत ही कम बार में काम की बात होती है। बहुत से लोग न्यूज़ की जगह डिबेट बोलने लगे हैं।
डिबेट टीवी देखना या स्पीड न्यूज़ देखना एक दर्शक होने के स्वाभिमान के साथ समझौता करना है। अपना अपमान कराना है। आप एक बार इस तरह के टीवी को रिजेक्ट कर देखिए। इसका कनेक्शन हटा कर देखिए। अब इस टीवी में आपके ही दबाव से कुछ होगा। वरना कोई उम्मीद नहीं है।